हम न जीत सके वो ऐसी शर्त लगाने लगे , प्यारी सी आँखों को हमारी आँखों से लड़ाने लगे , जीत जातें पर पलक हमने झपका ली , क्युकी उनकी प्यारी सी आँखों से आंसू आने लगे
अब तो किसी भी बात पे,ऐतबार नहीं होता होते हैं बस समझौते दिलों के,कोई प्यार नहीं होता कितना भी समझा लें हम,इस दिल-ए-नादान को एक क़तरा कभी,कोई सागर नहीं होता दिल में लिये हसरत किसी की,ये उम्र गुज़र जाती है के तक़दीर पे किसी की अपनी,इख्तियार नहीं होता लगते हैं जो पल सुहाने,वो हैं मेरे बस ख्वाबों के हकीक़त में कभी ख़ुशी का,दीदार नहीं होता ढल जाते हैं ये अश्क,एक और ग़म की राह लिये इन होंठों को अब किसी हंसी का,इंतज़ार नहीं होता
हमें उनसे कोई शिकायत नहीं, शायद हमारी किसमत में ही चाहत नहीं !!
मेरी तकदीर को लिख कर तो ऊपर वाला भी मुकर गया, पूछा तो कह दिया की ये मेरी लिखावट नहीं !!